धरती से फलक तक देख लिया, बहनो की खातिर कोई नहीं..........vikas sultanpuri


धरती से फलक तक देख लिया ,
 वो चेहरा कहीं न मिलता है ,
 वो शायद अल्लाह को प्यारी थी ,
 जो जन्नत उनको बुला लिया ,
 अब कैसे भला जी पाएंगे ?
 वो चेहरा कभी न आएगा ,
 मुस्कान तो उनकी ऐसी थी ,
 जो दिल को ही छू जाती थी ,
 खुदा को अक्सर जाने क्यों ,
 जल्दी रहती है बुलाने की ,
 दर्द क्यूँ इतना होता है ?
 जब अपना कोई गुजरता है ,
 आँखों में आँशु आते है ,
 जज्बातो को कह जाते है ,
 सुनने वाले न मिलते है ,
 बहरे सभी हो जाते है , 
 बहनो की बात करुँ मैं तो ,
 सब अंधे बेहरे दिखते है , 
 इन्साफ है डोडो चिड़िया सा ,
 बहनो की खातिर न मिलता , 
 बहनो की कितनी कीमत है , 
 अब देश में ये तो दिखता है , 
 सरकार अपाहिज मेरी है , 
 जो पैसो पर ही बिकती है , 
 धरती से फलक तक देख लिया,
 बहनो की खातिर कोई नहीं..........
                                     विकास सुल्तानपुरी की कलम से ..........
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